Sunday, January 25, 2009

तितली

नंदन वन -सा सजा बगीचा
हरी घास का बिछा गलीचा

फूलों ने रंग दी रंगोली
मानो खेल रहे हों होली

फूल फूल पर बैठी तितली
फूल पराग चूसतीं फिरती

जैसी जैसे मैं पास गया
मन में उसके शक सुवह हुआ

हाल चाल कुछ पूँछ ना पाया
फुर्र फुर्र उढ़ हाथ हिलाया
[भोपाल:०९.07.०८]

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