मेरा मन सुख रस पी पाता
तरेर तोड़ गगन के लाता
सब टीचर गिटपिट करते है
श्याम शेख सहमें रहते हैं
नहीं समझ में कुछ भी आता
मेरा तन मन कँप कँप जाता
मन मसोसकर मैं रह जाता
तुम अजीब ही हो सब बच्चे
पढने लिखने में सब कच्चे
तानें पर तानें सब मारें
कोई नहीं गुने मनुहारें
मन मेरा गहरा धँस जाता
मन में भाव उठें कुछ ऐसें
छुटकारा पाऊँ मैं कैसे ?
शाला हो घर ,अपनी भाषा
प्यार मुहब्बत की परिभाषा
पढ़ने लिखने से जुड़ पाता
[भोपाल :२९.०३ ०९]
कँप
Monday, March 30, 2009
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