अम्मा बापू ने बतलाया
कैसे कैसे वे पदढ पाये
'पट्टी' की पूजा होने पर
गुड का भेला फूटा
गाँव और बच्चों ने मिलकर
खूब मजा तब लूटा
रोज 'बुधक्का' पट्टी के संग
पैदल पढने शाला आए
'कित्कंनों 'के ऊपर हमने
अपनी कलम घुमाई
पंडित जी ने 'ओणम' गिनती
बार बार रत्बाई
कान खिचे मुर्गा बन कर के
जाने कितने डंडे खाए
पंडित जी के संकेतों पर
पढ़ते लिखते सोते
रहे चुराते जी पढने से
मिले सदा वे रोते
पढ़े लिखे भूखे नंगे हम
तब आलिम्फाजिल बन पाये
[भोपाल:१२.०२.०९]
१२.०२.०९]
Thursday, February 12, 2009
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