अम्मा बापू ने समझाया
कैसे कैसे वे पढ़पाए
पट्टी की पूजा होने पर
गुड़ का भेला फूटा
गाँव और बच्चों ने मिलजुल
खूब मज़ा तब लूटा
रोज़ 'बुद्क्का ' पट्टी के संग
पैदल पढने शाला आए
'कित्किन्नो ' के ऊपर हमने
अपनी कलम घुमाई
'ओनम' गिनती पंडितजी ने
बार बार रत्बाई
कान खिचे मुर्गा बन करके
जाने कितने डंडे खाए
पंडितजी के संकेतों पर
पढ़ते लिखते सोते
रहे खपाते जी पढनेमें
मिले सदा ही पढ़ते
भूखे नंगे रह पढ़े लिखे
तब बन पाये आलिम फाजिल
[भोपाल:१३.०२.०९]
Tuesday, May 19, 2009
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