Wednesday, November 4, 2009

दादी माँ का चश्मा

एक ओर का हैंडल टूटा
कांच दूसरा आधा फूटा
दादी को है नहीं मलाल
करता है बो खूब कमाल
घूर घूर सब ओर देखती
रंगों के सब भेद परखती
पल पल माला जपती जाती
पूँछों तो झटपट बतलाती
लाल गुलाब लाल बत्ती का
हरा बबूल नीम पत्ती का
सरसों का रंग है पीला
बच्चों के बस्तों का नीला
[भोपाल:०९.०७.०८]

No comments: