देखो नचता मोर
तन मन होय विभोर
लेता पंख समेट
अगर मचाया शोर
जब जब नाचे मोर
मौन धरे तब शोर
घन घमंड में चूर
छाय घटा घन घोर
राष्ट्र पखेरू मोर
सिर पर है सिरमौर
मनमोहक हैं पंख
कहलाते चितचोर
[रेलपथ उज्जैन शुजालपुर :२६.०८.०८]
Wednesday, November 4, 2009
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