Wednesday, November 18, 2009

प्राक्कथन

बाल मन को मनमोहनेवाली रच्नोयों का यह संग्रह बल भगवानकी पूजा अराधना है .बच्चों की मुस्कान ही परिवार और देश की शान है .इससे बढ़कर कोई पूजा नहीं कि बड़े लोग बच्चों के साथ गाएँ,बातें करें और समय
बिताएं .डॉक्टर जयजयराम आनंद के आनंद के सार्थक क्षण बच्चों की संगती में बीतते हैं .इससे आदान प्रदान
उभय पक्षी होता है वे बच्चों से उत्साह प्राप्त करते हैं औरबच्चे आनंदजी से प्रेरणा .
डॉक्टर आनंद जी मेरे पी .जी .बी .टी .कॉलेज के सहपाठी रहे हैं .शुरू से बालमनोविज्ञान के पारखी और बच्चों से प्रेम करने में उनकी रूचि और शुचि रही है .उनकी कविता के चरण बाल मन की ऊचाइयों को छूते हैं और परवेश कि आत्मीयता बच्चों को सजीवता देती है यह बुढ़ापे का जीवंत उपयोग कोई सीखे तो डॉक्टर आनंद जी से सीखे।
डॉक्टर राष्ट्रबंधु
सम्पादक बाल साहित्यसमीक्षा
१०९/३०९ रामकृष्ण नगर कानपूर २०८०१२

No comments: