Tuesday, July 21, 2009

कहानी वारिश की

नाव हमारी है कागज की
अजब कहानी वारिश की
सूरज निकला आसमान में
धूपदान की हठ ठानी
भूरे काले बादल दौड़े
वारिश करती मनमानी
सड़क डगर सब गलियाँ भीगीं
ghr aangn में पानी पानी
रेनकोट छतरी चिल्लाई
नाव कर रही अगवानी
नाव हमारी कागज़ की
अजब कहानी वरिश ki
दौडे राही इधर उधर को
भींग ण जाए कपड़े लत्ते

पेड़ों कीछाया में ठिठके

बचा रहे मिलजुलकर पत्ते

खाली हाथों बादल भागे

खर से सर से जैसे सींग

faili गंध सरीली भीनीं

बिखरी ज्यों धरती पर हींग

टप टप बूंदों में खत्म कहानी

अजब कहानी वारिश ki

[panjim : 29.06.88] :

कल्लू भाई

गया ज़माना अब बो भाई
छुआछूत की शामत आई
साफ़ सफाई सही गवाही
शूट बूट में कल्लू भाई
कर लेता है खूब कमाई
खाता माखन दूध मलाई
मोबाइल नित काम दिलाता
नई नई गाड़ी कसबाई
ठाट बाट में कल्लू भाई
भोपाल:१०.०५.०९]

पढ्ने जाना

मम्मी मुझको पढ़ने जाना
जब छुट्टी हो लेने आना
नई ड्रेस हो रंग बिरंगी
देखें खुश हों संगी साथी
नया नया हो मेरा बस्ता
मेरा ताजा नाश्ता खस्ता
छुट्टी हो मिलजुलकर खाएँ
खाकर के ताज़ा हों जाएँ
घर आँगन जैसी हो शाला
दादा दादी सा रखवाला
रंग बिरंगे पन्नों वाली
हर किताब का ताना बाना
लगता हो जाना पहचाना
[भोपाल:०६.०९.०८]

नाना नानी

जैसे ही मैं घर पहुँची
मम्मी बोली भर लो पानी
साफ सफाई घर की करलो
आने वाले नाना नानी
आए जैसे ही घर दोनों
लाये भारी भरी अटैची
दौड़ी दौड़ी मैं बस्ते से
आनन फानन लाई कैंची
देखे टॉफी खेल खिलौने
खुशियाँ भूलीं ठौर ठिकाना
होमवर्क में आई उलझन
सबसे अच्छा मिला बहाना
बटबारे ने खड़ा कर दिया
छीना झपटी और झगड़ना
चुन्नू मुन्नू किए तमाशा
रोना धोना पैर पटकना
नाना नानी ने दोनों को
अपनी अपनी गोद उठाया
आंसू पोंछे लाड़ प्यार से
चुन्नू मुन्नू को समझाया
[भोपाल:१५.१२.०८]

माँ

प्यारी प्यारी माँ का
मुझ पर प्यार टपकता
भनक परे रोने की
सारा प्यार उमड़ता
सब कुछ छोडे जहां तहाँ
झटपट गोदी लेती
खुश हो हो कर गाती
ढेर चुम्मियां लेती
कन्धों से चिपकाकर
खोले सरपट चोली
मीठा दूध पिलाकर
गाती मीठी रोली
[भरूच:११०३.०९]

हाय हाय यह वर्षा कैसी !

काले काले बदल छाये
सागर से पानी भर लाये
चंदा सूरज जेल में डाले
मुंह दिखलाने से शरमाये
हाय हाय यह वर्षा कैसी!
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी
पलभर को भी रुके ण पानी
घर से निकलो जी घबराए
आती याद सभी को नानी
हाय हाय यह वर्षा कैसी!
नद नालों में पूर आ गई
गली गाँव खलिहान छा गई
ऊबे पशु पंछी नर नारी
आंधी पानी बाढ़ आगयी
हाय हाय यह वर्षा कैसी!
[पंजिम:११.०८.८८]

फूल फूल पर तितली

नंदन वन सा सजा बगीचा
हरी घास का बिछा गलीचा
फूलों ने रंग दी रंगोली
मानो खेल रहें हों होली
फूल फूल पर बैठी तितली
फूल पराग चूसतीं तितली
जैसे जैसे मैं पास गया
मन में उसके शक सुबह हुआ
हाल चल कुछ पूंछ ण पाया
फुर्र फुर्र उढ़ हाथ हिलाया
[भोपाल:०९.०७.०८]

चंदा तारे सजी बरात

सूरज दिन भर काम करे
सौ सौ हाथों दान करे
जब थककर चकनाचूर हो
घर जाने को मजबूर हो
चुपके से ले आए रात
चंदा तारे सजी बरात
{भोपाल:२५.०८.०८]

मॉल बजाल

मम्मी पापा के छंग छंग
मॉल बजाल गया
भीतल बाहल देख सजावट
पलियों का बाजाल लगा
मोल भाव की नहीं जलूलत
छब चीजों पर भाव छपा
मन मेरा तितली -सा नाचा
मम्मी पापा के बटुआ ने
जो माँगा छो दिलबाया
तरह तरह के खिलौने
चाकलेट टॉफी लाया
जिसको देखा वही वहां से
हंसता हुआ गया
[भोपाल;:३१.०७.०८]

साइकिल

मोटर रेल जहां न जाती
साइकिल बहाँ भी आती जाती
रोटी दाल भात ना खाती
हवा के बल पर इठलाती
नहीं जरूरत चार पाँव की
सैर कराती गाँव शहर की
राम रहीमा करे सवारी
ढोती उनका बस्ता भारी
[भोपाल;.०९.०८]

छाया

छाया हैं पेड़ों की माया
गर्मी में सुख देती छाया
चलता चलता जो थक जाए
छाया के घर में टिक जाए
पानी पीकर प्यास बुझाए
लोरी गा गा तुरत सुलाए
[भोपाल:१५.०९.०८]

मम्मी पापा

सब सच कहते अच्छे हैं
ह्ह्को लगते अच्छे हैं
मेले में जो दिलबाते
खेलखिलौने अच्छे हैं
दुःख भोगें सुख हमको दें
सचमुच इतने अच्छे हैं
पढ़ने लिखने मैं जब चूकें
राह दिखाते अच्छे हैं
मम्मी धरा ,गगन पापा
सब गुन गाते अच्छे हैं
[भरूच:१४.०६.०८]

Monday, July 20, 2009

मानू भानू

एक
म्याऊँ म्याऊँ बिल्ली बोली
मामी पापा मानू बोली
भों भों कुत्ता भौंका
सुनकर एकदम भानू चौका
दो
में में में में बकरी मिमिआई
मानू के घर नानी आई
काँव काँव जब कौवा बोला
कुहू कुहू कोयल मुंह खोला
तीन
मानू बोली पापा मम्मी
भानू बोला नाना नानी
यह सब चारों को ही भाया
हँस हँस दोनों को गले लगाया
[भरूच:१४.10.०८]

दादी माँ

मेरी दादी
पहने खादी
कर में लकुटी
टिक टिक करती
धीरे चलती
बच्चों की शैतानी पर भी
हंस हंस कर आशीष लुटाती
खुश हो बच्चे आगे बढ़ते
मिलजुलकर शाला में पढ़ते
दादी मन्दिर को चल देती
भजन कीर्तन का सुख लेती
[भोपाल:१५.०७.०८]


khush ho गहे लकुटिया
टिक टिक करती
आगे बढ़ती
बच्चे लगे चिढ़ाने
माँ लागी खिसियाने
आई चाची भोली
खोली अपनी झोली
बच्चों को दी टॉफी
माँ को थोड़ी कोंफी
दादी चल दी मन्दिर को
बच्चे भागे शाला को
[भोपाल:१५.०७.०८.]

Monday, July 6, 2009

मुर्गी


मुर्गी अंडे देने वाली


सबको अच्छी लगती हैं


दरबे से बहर आते ही


आढी तिरछी चलती हैं


जहां कहीं मिल जाए दाना


चुगने को चल देती हैं


बच्चे जैसे ही देखें


ढेलें उनको मारें


[भरूच:१२.०६.०८]


रोटी का रोल


सूरज चंदा दोनों गोल
पुरीं रोटियाँ गोलमटोल
स्वाद में ज्यादा खानेवाले
तोंदूंमल -सीं तोंदों वाले
तोंदें उनकी आगे चलतीं
पग पग पर बीमारी छलतीं
मौत ण करती टालमटोल
दुनिया से हो जल्दी गोल
प्यारे बच्चो मेहनत करना
जीवन में nit आगे बढ़ना
मेहनत की रोटी का रोल
जीवन लंबा दे अनमोल
[भोपाल:१५.११.०८]