मेरी दादी
पहने खादी
कर में लकुटी
टिक टिक करती
धीरे चलती
बच्चों की शैतानी पर भी
हंस हंस कर आशीष लुटाती
खुश हो बच्चे आगे बढ़ते
मिलजुलकर शाला में पढ़ते
दादी मन्दिर को चल देती
भजन कीर्तन का सुख लेती
[भोपाल:१५.०७.०८]
khush ho गहे लकुटिया
टिक टिक करती
आगे बढ़ती
बच्चे लगे चिढ़ाने
माँ लागी खिसियाने
आई चाची भोली
खोली अपनी झोली
बच्चों को दी टॉफी
माँ को थोड़ी कोंफी
दादी चल दी मन्दिर को
बच्चे भागे शाला को
[भोपाल:१५.०७.०८.]
Monday, July 20, 2009
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