Friday, October 23, 2009

नाव हमारी है कागज की
अजब कहानी वारिश की
सूरज निकला आसमान में
धूपदान की हठ ठानी
भूरे काले बादल दौड़े
वारिश करती मनमानी
सड़क डगर सब गलियाँ भीगीं
ghr aangn में पानी पानी
रेनकोट छतरी चिल्लाई
नाव कर रही अगवानी
नाव हमारी कागज़ की
अजब कहानी वरिश की
दौडे राही इधर उधर को
भींग ण जाए कपड़े लत्ते
पेड़ों कीछाया में ठिठके
बचा रहे मिलजुलकर पत्ते
खाली हाथों बादल भागे
खर से सर से जैसे सींग
faili गंध सरीली भीनीं
बिखरी ज्यों धरती पर हींग
टप टप बूंदों में खत्म कहानी
अजब कहानी वारिश ki
[panjim : 29।06।88] :

Sunday, October 18, 2009

खेल खेल में रेल


आओ हम सब खेले खेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
आगे ही वाला इंजन हो
पीछे झंडी वाला हो
बीच में हम सब बोगी हों
दूर रहें जो रोगी हों
हँसते गाते खेले खेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
पढ़ना लिखना छोड़ो बस्ता
सफ़र लगेगा सबको सस्ता
सीटी सुनकर चल दी गाड़ी
छुक छुक छुक छुक बोले गाड़ी
मज़ा दे रहा सबको खेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
धीरे धीरे ही चलती है
स्टेशन पर ही रुकती है
लो आया अब घर नानी का
मज़ा मिले खाने पीने का
ख़तम करो अब रेलमपेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
[भोपाल:१५०९.]

पढने जाना

मुम्मी मुझको पढने जाना
जब छुट्टी हो लेने आना
नई ड्रेस हो रंग बिरंगी
देखे खुश हो साथी संगी
नया नया हो बस्ता प्यारा
ताजा नास्ता मीठा खारा
छुट्टी हो मिलजुलकर खाएँ
खाकरके ताजा हो जाएँ
घर आँगन जैसी हो शाला
दादा दादी -सा रखवाला
रंग बिरंगे पन्नों वाली
नीले पीले रंगों वाली
हर किताब का ताना बाना
लगता हो जाना पहचाना
[भोपाल:०६.०९.०८]

कलम

मेरी प्यारी कलम
सबसे न्यारी कलम
आँख खोलकर चले
जीते पारी कलम
सोच सोच कर रखे
लिखना जारी कलम
लीक छोड़ कर चले
हंसती गाती कलम
रचे नया इतिहास
सोने जैसी कलम
[नागपुर :२६.०२.०९]


भारी बस्ता

होम वर्क करते थक जाना
जैसे जहाँ वहीं सो जाना
आनन फानन तड़के उठना
उठते उठते आँखें मलना
बस्ता टिफिन साथ ले चलना
दिनभर शाला में फ़िर खटना
सर पर भूत पढ़ाई चढ़ता
अनचाहा सर माथे पड़ता
हम बच्चों की हालत खस्ता
पढना लिखना भारी बस्ता
[भोपाल:०९.०४.०९]

पतंग

मेरी पतंग के क्या कहने
रंग विरंगे कपड़े पहने
मंहगे -गहने लम्बी चोटी
हवा खिलाती उसको रोटी
फर फर हवा संग उड़ जाती
नीलगगन से हाथ मिलाती
लम्बी डोरी मांझा तगड़ा
लड़े पेंच हो जाए झगड़ा
'बो काटा 'बच्च्बों को भाया
लूट पात फिर मजा उडाया
[भोपाल:०७.०२.०९]

लोरी

घर आँगन किलकारी से
दिनभर खेलाकूदा
हँसनेरोने के बल पर
गोदी गोदी झूली
रात हुई अबसो जा सो जा
अरी लाड़ली सो जा सो जा
बिल्ली कुत्ता तोता भी
तेरी तरह न रोये हैं
गहरी निदिया आँचल में
आँख मींचकर सोये हैं
कल ले लेना जिसको खोजा
राजकुमारी सोजा सोजा
होम वर्क पढ़ना लिखना
चैन न लेने देंगे
दुनियादारी के सपने
उलझन में रख देंगे
अभी समय है सो जा सोजा
[भरूच :३०.१०.०९]

Friday, October 16, 2009

ऊँट

पतली पतली टांगें
लम्बी गर्दन वाला
कूबड़ खाई जैसा
बोझा ढोने बाला
बिना पिए पानी के
काम चलाने वाला
मरु जहाज़ कहलाता
झाड़ी खाने वाला
भारी बोझा ढो ढो
कभी न थकने वाला
सब बच्चे यह कहते:
'ऊँट बड़ा मतवाला '
बैठ पीठ पर उसके
आसमान को छूलो
मजा मिलेगा बच्चो
घोड़ा हाथी भूलो
[भरूच:१३.०६.०८]

हाथी

बोलो बोलो मेरे साथी
देखो मोहन सोहन हाथी
भरी भरकम पेड़ तने सा
चार पाँव का होता हाथी
लम्बी सूंड मेंभ्र्ता पानी
छोटी पूँछ रहे अनजानी
सूप सरीखे कान हैं दोनों
कान बड़े होते लासानी
बड़े काम का ये होता है
जंगल में लकड़ी धोता है
जब बच्चे मिल करें सवारी
तब बाग़ बाग़ मन होता है
[रेल पथ भोपाल से उज्जैन :१०.०६.०८]

Thursday, October 15, 2009

मेरा घोड़ा

लकड़ी का है मेरा घोड़ा
उसे न खाना कोड़ा
जैसे ही मैं ऐड लगाता
अद्भुत खूब कमाल दिखाता
मुझको सचमुच में भाता
दुनिया भर की सैर कराता
खाता है ना दाना पानी
रुके देख घर नाना नानी
भोपाल:१२.०८.०८]

बचपन की शीरत

घुटनों के बल चलता है
नहीं किसी से डरता है
माटी या जो कुछ मिल जाए
अपने मुंह में धरता है

दिनभर में कितना चलता
नहीं पता कुछ भी लगता
नाक सामने अगर चले
शायद पहुंचे कलकत्ता

चलना फिरना कसरत है
मान बापू की हसरत है
चंचलता भोलेपन में
हर बचपन की शीरत है
[भोपाल:१०.07.०८]



गोदी

प्यारी प्यारी गोदी
सुख सपनों की झोरी

माँ ने गोद उठाया
झटपट दूध पिलाया
गा गा गीत सुनाया
निदिया भोली भाली
आई चोरी चोरी

मचल पडी जब बहना
आंसू जैसे झरना
माँ की गोदी करुणा
मति की माँ अति भोरी
गाई मीठी लोरी

गोदी सुख बरसाए
सपने दौडे आए
मीठे गीत सुनाये
गोदी रेशम डोरी
बांधे छोरा छोरा
[भरूच:१४.०६.०८]

भैया

मेरा भैया राजदुलारा
सबकी आंखों का तारा

मुझको रोज़ पढाता
मेरा जी बहलाता

भूख लगे जब मुझको
बिस्कुट दूध पिलाता

सब भैय्यों से न्यारा
सबकी आंखों का तारा

जब भी मेला आता
साथ मुझे ले जाता
खेल ख्जिलोना टॉफी
चाकलेट दिलबाता
मेरे मन का उजियारा
सबकी आखों का तारा
[भरूच:२०.०६.०८]


sb

छोटी बुआ की भूल

माल पुए अम्मा ने पकाए
जीभर छोटी बुआ ने खाए
ऊपर से गपगप खाई खीर
लोटा भरके पी गयी नीर
मची पेट में रेलमपेल
मजेदार भोजन का खेल
गई तोंद जब गेंद सी फूल
पता चली तब बुआ को भूल
[भोपाल:१०.०८.०८]