Friday, October 16, 2009

हाथी

बोलो बोलो मेरे साथी
देखो मोहन सोहन हाथी
भरी भरकम पेड़ तने सा
चार पाँव का होता हाथी
लम्बी सूंड मेंभ्र्ता पानी
छोटी पूँछ रहे अनजानी
सूप सरीखे कान हैं दोनों
कान बड़े होते लासानी
बड़े काम का ये होता है
जंगल में लकड़ी धोता है
जब बच्चे मिल करें सवारी
तब बाग़ बाग़ मन होता है
[रेल पथ भोपाल से उज्जैन :१०.०६.०८]

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