Sunday, October 18, 2009

खेल खेल में रेल


आओ हम सब खेले खेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
आगे ही वाला इंजन हो
पीछे झंडी वाला हो
बीच में हम सब बोगी हों
दूर रहें जो रोगी हों
हँसते गाते खेले खेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
पढ़ना लिखना छोड़ो बस्ता
सफ़र लगेगा सबको सस्ता
सीटी सुनकर चल दी गाड़ी
छुक छुक छुक छुक बोले गाड़ी
मज़ा दे रहा सबको खेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
धीरे धीरे ही चलती है
स्टेशन पर ही रुकती है
लो आया अब घर नानी का
मज़ा मिले खाने पीने का
ख़तम करो अब रेलमपेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
[भोपाल:१५०९.]

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया बालरचना है। बधाई