Thursday, October 15, 2009

बचपन की शीरत

घुटनों के बल चलता है
नहीं किसी से डरता है
माटी या जो कुछ मिल जाए
अपने मुंह में धरता है

दिनभर में कितना चलता
नहीं पता कुछ भी लगता
नाक सामने अगर चले
शायद पहुंचे कलकत्ता

चलना फिरना कसरत है
मान बापू की हसरत है
चंचलता भोलेपन में
हर बचपन की शीरत है
[भोपाल:१०.07.०८]



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