घुटनों के बल चलता है
नहीं किसी से डरता है
माटी या जो कुछ मिल जाए
अपने मुंह में धरता है
दिनभर में कितना चलता
नहीं पता कुछ भी लगता
नाक सामने अगर चले
शायद पहुंचे कलकत्ता
चलना फिरना कसरत है
मान बापू की हसरत है
चंचलता भोलेपन में
हर बचपन की शीरत है
[भोपाल:१०.07.०८]
Thursday, October 15, 2009
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