Wednesday, November 18, 2009

प्राक्कथन

बाल मन को मनमोहनेवाली रच्नोयों का यह संग्रह बल भगवानकी पूजा अराधना है .बच्चों की मुस्कान ही परिवार और देश की शान है .इससे बढ़कर कोई पूजा नहीं कि बड़े लोग बच्चों के साथ गाएँ,बातें करें और समय
बिताएं .डॉक्टर जयजयराम आनंद के आनंद के सार्थक क्षण बच्चों की संगती में बीतते हैं .इससे आदान प्रदान
उभय पक्षी होता है वे बच्चों से उत्साह प्राप्त करते हैं औरबच्चे आनंदजी से प्रेरणा .
डॉक्टर आनंद जी मेरे पी .जी .बी .टी .कॉलेज के सहपाठी रहे हैं .शुरू से बालमनोविज्ञान के पारखी और बच्चों से प्रेम करने में उनकी रूचि और शुचि रही है .उनकी कविता के चरण बाल मन की ऊचाइयों को छूते हैं और परवेश कि आत्मीयता बच्चों को सजीवता देती है यह बुढ़ापे का जीवंत उपयोग कोई सीखे तो डॉक्टर आनंद जी से सीखे।
डॉक्टर राष्ट्रबंधु
सम्पादक बाल साहित्यसमीक्षा
१०९/३०९ रामकृष्ण नगर कानपूर २०८०१२

हार्दिक बधाई

मैंने डॉक्टर जयजयराम आनंद की बालोपयोगी काव्य कृति ,'चाँद सितारों में आनंद 'का अवलोकन किया उन्हें बालरूचि ,बाल प्रक्रति का अच्छा ज्ञान है.अतएव बालको के प्रिय विषयों पर उन्होंने कवितायों का स श्रजन किया हैं इन बाल कवितायों से बच्चों का मनोरंजन तो होगा ही उनका ज्ञान वर्धन भी होगा ।
मैं बाल काव्य प्रणेता डॉक्टर जयजयराम आनंद को श्रेष्ठ बल काव्य के प्रणयन के लिए हार्दिक बधाई
देता हूँ .आशा है इस पुस्तक यत्र तत्र सर्वत्र सहर्ष स्वागत होगा ।

दिनांक :१७.०२.२००९ विनोद चन्द्र पाण्डेय 'विनोद'
पूर्व निर्देशक उ .प्र.हिन्दी संस्थान,लखनऊ

Saturday, November 7, 2009

सीखें गिनती

आओ हम सब सीखें गिनती

मेरी प्यारी mu

Wednesday, November 4, 2009

मोर

देखो नचता मोर
तन मन होय विभोर
लेता पंख समेट
अगर मचाया शोर
जब जब नाचे मोर
मौन धरे तब शोर
घन घमंड में चूर
छाय घटा घन घोर
राष्ट्र पखेरू मोर
सिर पर है सिरमौर
मनमोहक हैं पंख
कहलाते चितचोर
[रेलपथ उज्जैन शुजालपुर :२६.०८.०८]

सुन सुन बिटिया

सुन सुन बिटिया छोड़ो खटिया
छिपा अँधेरा हुआ सवेरा
तोता कौवा जागी दुनिया
सुन सुन बिटिया छोड़ो खटिया
दादा दादी मम्मी पापा
बबलू जागा छोडी खटिया
सुन सुन बिटिया छोड़ो खटिया
चीं चीं चहकी बहकी चिडिया
उडती तितली अपनी बगिया
सुन सुन बिटिया छोड़ो खटिया
[बडोदरा से भरूच रेल पथ०३.१०.०८]

दादी माँ का चश्मा

एक ओर का हैंडल टूटा
कांच दूसरा आधा फूटा
दादी को है नहीं मलाल
करता है बो खूब कमाल
घूर घूर सब ओर देखती
रंगों के सब भेद परखती
पल पल माला जपती जाती
पूँछों तो झटपट बतलाती
लाल गुलाब लाल बत्ती का
हरा बबूल नीम पत्ती का
सरसों का रंग है पीला
बच्चों के बस्तों का नीला
[भोपाल:०९.०७.०८]

बडा नहीं हो जाऊँ

जब तक बडा नहीं हो जाऊँ
तब तक मैं स्कूल न जाऊँ
भूख लगे माँ दूध पिलाती
निंदिया आए खाट बिछाती
मीठी मीठी रोली गाती
कथा कहानी खूब सुनाती
मैं घर भर मैं खुशियाँ बोऊँ
पापा जी ज्यों घर आते
ढेलों छालीं खुछियाँ लाते
खेल खिलौना खूब खिलाते
बाग़ बगीचा छैल कलाते
फिल तो मैं बिल्कुल ना लोऊँ
[भरूच:०६.१०.०८]

Friday, October 23, 2009

नाव हमारी है कागज की
अजब कहानी वारिश की
सूरज निकला आसमान में
धूपदान की हठ ठानी
भूरे काले बादल दौड़े
वारिश करती मनमानी
सड़क डगर सब गलियाँ भीगीं
ghr aangn में पानी पानी
रेनकोट छतरी चिल्लाई
नाव कर रही अगवानी
नाव हमारी कागज़ की
अजब कहानी वरिश की
दौडे राही इधर उधर को
भींग ण जाए कपड़े लत्ते
पेड़ों कीछाया में ठिठके
बचा रहे मिलजुलकर पत्ते
खाली हाथों बादल भागे
खर से सर से जैसे सींग
faili गंध सरीली भीनीं
बिखरी ज्यों धरती पर हींग
टप टप बूंदों में खत्म कहानी
अजब कहानी वारिश ki
[panjim : 29।06।88] :

Sunday, October 18, 2009

खेल खेल में रेल


आओ हम सब खेले खेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
आगे ही वाला इंजन हो
पीछे झंडी वाला हो
बीच में हम सब बोगी हों
दूर रहें जो रोगी हों
हँसते गाते खेले खेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
पढ़ना लिखना छोड़ो बस्ता
सफ़र लगेगा सबको सस्ता
सीटी सुनकर चल दी गाड़ी
छुक छुक छुक छुक बोले गाड़ी
मज़ा दे रहा सबको खेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
धीरे धीरे ही चलती है
स्टेशन पर ही रुकती है
लो आया अब घर नानी का
मज़ा मिले खाने पीने का
ख़तम करो अब रेलमपेल
मिलजुलकर बन जाए रेल
[भोपाल:१५०९.]

पढने जाना

मुम्मी मुझको पढने जाना
जब छुट्टी हो लेने आना
नई ड्रेस हो रंग बिरंगी
देखे खुश हो साथी संगी
नया नया हो बस्ता प्यारा
ताजा नास्ता मीठा खारा
छुट्टी हो मिलजुलकर खाएँ
खाकरके ताजा हो जाएँ
घर आँगन जैसी हो शाला
दादा दादी -सा रखवाला
रंग बिरंगे पन्नों वाली
नीले पीले रंगों वाली
हर किताब का ताना बाना
लगता हो जाना पहचाना
[भोपाल:०६.०९.०८]

कलम

मेरी प्यारी कलम
सबसे न्यारी कलम
आँख खोलकर चले
जीते पारी कलम
सोच सोच कर रखे
लिखना जारी कलम
लीक छोड़ कर चले
हंसती गाती कलम
रचे नया इतिहास
सोने जैसी कलम
[नागपुर :२६.०२.०९]


भारी बस्ता

होम वर्क करते थक जाना
जैसे जहाँ वहीं सो जाना
आनन फानन तड़के उठना
उठते उठते आँखें मलना
बस्ता टिफिन साथ ले चलना
दिनभर शाला में फ़िर खटना
सर पर भूत पढ़ाई चढ़ता
अनचाहा सर माथे पड़ता
हम बच्चों की हालत खस्ता
पढना लिखना भारी बस्ता
[भोपाल:०९.०४.०९]

पतंग

मेरी पतंग के क्या कहने
रंग विरंगे कपड़े पहने
मंहगे -गहने लम्बी चोटी
हवा खिलाती उसको रोटी
फर फर हवा संग उड़ जाती
नीलगगन से हाथ मिलाती
लम्बी डोरी मांझा तगड़ा
लड़े पेंच हो जाए झगड़ा
'बो काटा 'बच्च्बों को भाया
लूट पात फिर मजा उडाया
[भोपाल:०७.०२.०९]

लोरी

घर आँगन किलकारी से
दिनभर खेलाकूदा
हँसनेरोने के बल पर
गोदी गोदी झूली
रात हुई अबसो जा सो जा
अरी लाड़ली सो जा सो जा
बिल्ली कुत्ता तोता भी
तेरी तरह न रोये हैं
गहरी निदिया आँचल में
आँख मींचकर सोये हैं
कल ले लेना जिसको खोजा
राजकुमारी सोजा सोजा
होम वर्क पढ़ना लिखना
चैन न लेने देंगे
दुनियादारी के सपने
उलझन में रख देंगे
अभी समय है सो जा सोजा
[भरूच :३०.१०.०९]

Friday, October 16, 2009

ऊँट

पतली पतली टांगें
लम्बी गर्दन वाला
कूबड़ खाई जैसा
बोझा ढोने बाला
बिना पिए पानी के
काम चलाने वाला
मरु जहाज़ कहलाता
झाड़ी खाने वाला
भारी बोझा ढो ढो
कभी न थकने वाला
सब बच्चे यह कहते:
'ऊँट बड़ा मतवाला '
बैठ पीठ पर उसके
आसमान को छूलो
मजा मिलेगा बच्चो
घोड़ा हाथी भूलो
[भरूच:१३.०६.०८]

हाथी

बोलो बोलो मेरे साथी
देखो मोहन सोहन हाथी
भरी भरकम पेड़ तने सा
चार पाँव का होता हाथी
लम्बी सूंड मेंभ्र्ता पानी
छोटी पूँछ रहे अनजानी
सूप सरीखे कान हैं दोनों
कान बड़े होते लासानी
बड़े काम का ये होता है
जंगल में लकड़ी धोता है
जब बच्चे मिल करें सवारी
तब बाग़ बाग़ मन होता है
[रेल पथ भोपाल से उज्जैन :१०.०६.०८]

Thursday, October 15, 2009

मेरा घोड़ा

लकड़ी का है मेरा घोड़ा
उसे न खाना कोड़ा
जैसे ही मैं ऐड लगाता
अद्भुत खूब कमाल दिखाता
मुझको सचमुच में भाता
दुनिया भर की सैर कराता
खाता है ना दाना पानी
रुके देख घर नाना नानी
भोपाल:१२.०८.०८]

बचपन की शीरत

घुटनों के बल चलता है
नहीं किसी से डरता है
माटी या जो कुछ मिल जाए
अपने मुंह में धरता है

दिनभर में कितना चलता
नहीं पता कुछ भी लगता
नाक सामने अगर चले
शायद पहुंचे कलकत्ता

चलना फिरना कसरत है
मान बापू की हसरत है
चंचलता भोलेपन में
हर बचपन की शीरत है
[भोपाल:१०.07.०८]



गोदी

प्यारी प्यारी गोदी
सुख सपनों की झोरी

माँ ने गोद उठाया
झटपट दूध पिलाया
गा गा गीत सुनाया
निदिया भोली भाली
आई चोरी चोरी

मचल पडी जब बहना
आंसू जैसे झरना
माँ की गोदी करुणा
मति की माँ अति भोरी
गाई मीठी लोरी

गोदी सुख बरसाए
सपने दौडे आए
मीठे गीत सुनाये
गोदी रेशम डोरी
बांधे छोरा छोरा
[भरूच:१४.०६.०८]

भैया

मेरा भैया राजदुलारा
सबकी आंखों का तारा

मुझको रोज़ पढाता
मेरा जी बहलाता

भूख लगे जब मुझको
बिस्कुट दूध पिलाता

सब भैय्यों से न्यारा
सबकी आंखों का तारा

जब भी मेला आता
साथ मुझे ले जाता
खेल ख्जिलोना टॉफी
चाकलेट दिलबाता
मेरे मन का उजियारा
सबकी आखों का तारा
[भरूच:२०.०६.०८]


sb

छोटी बुआ की भूल

माल पुए अम्मा ने पकाए
जीभर छोटी बुआ ने खाए
ऊपर से गपगप खाई खीर
लोटा भरके पी गयी नीर
मची पेट में रेलमपेल
मजेदार भोजन का खेल
गई तोंद जब गेंद सी फूल
पता चली तब बुआ को भूल
[भोपाल:१०.०८.०८]

Tuesday, July 21, 2009

कहानी वारिश की

नाव हमारी है कागज की
अजब कहानी वारिश की
सूरज निकला आसमान में
धूपदान की हठ ठानी
भूरे काले बादल दौड़े
वारिश करती मनमानी
सड़क डगर सब गलियाँ भीगीं
ghr aangn में पानी पानी
रेनकोट छतरी चिल्लाई
नाव कर रही अगवानी
नाव हमारी कागज़ की
अजब कहानी वरिश ki
दौडे राही इधर उधर को
भींग ण जाए कपड़े लत्ते

पेड़ों कीछाया में ठिठके

बचा रहे मिलजुलकर पत्ते

खाली हाथों बादल भागे

खर से सर से जैसे सींग

faili गंध सरीली भीनीं

बिखरी ज्यों धरती पर हींग

टप टप बूंदों में खत्म कहानी

अजब कहानी वारिश ki

[panjim : 29.06.88] :

कल्लू भाई

गया ज़माना अब बो भाई
छुआछूत की शामत आई
साफ़ सफाई सही गवाही
शूट बूट में कल्लू भाई
कर लेता है खूब कमाई
खाता माखन दूध मलाई
मोबाइल नित काम दिलाता
नई नई गाड़ी कसबाई
ठाट बाट में कल्लू भाई
भोपाल:१०.०५.०९]

पढ्ने जाना

मम्मी मुझको पढ़ने जाना
जब छुट्टी हो लेने आना
नई ड्रेस हो रंग बिरंगी
देखें खुश हों संगी साथी
नया नया हो मेरा बस्ता
मेरा ताजा नाश्ता खस्ता
छुट्टी हो मिलजुलकर खाएँ
खाकर के ताज़ा हों जाएँ
घर आँगन जैसी हो शाला
दादा दादी सा रखवाला
रंग बिरंगे पन्नों वाली
हर किताब का ताना बाना
लगता हो जाना पहचाना
[भोपाल:०६.०९.०८]

नाना नानी

जैसे ही मैं घर पहुँची
मम्मी बोली भर लो पानी
साफ सफाई घर की करलो
आने वाले नाना नानी
आए जैसे ही घर दोनों
लाये भारी भरी अटैची
दौड़ी दौड़ी मैं बस्ते से
आनन फानन लाई कैंची
देखे टॉफी खेल खिलौने
खुशियाँ भूलीं ठौर ठिकाना
होमवर्क में आई उलझन
सबसे अच्छा मिला बहाना
बटबारे ने खड़ा कर दिया
छीना झपटी और झगड़ना
चुन्नू मुन्नू किए तमाशा
रोना धोना पैर पटकना
नाना नानी ने दोनों को
अपनी अपनी गोद उठाया
आंसू पोंछे लाड़ प्यार से
चुन्नू मुन्नू को समझाया
[भोपाल:१५.१२.०८]

माँ

प्यारी प्यारी माँ का
मुझ पर प्यार टपकता
भनक परे रोने की
सारा प्यार उमड़ता
सब कुछ छोडे जहां तहाँ
झटपट गोदी लेती
खुश हो हो कर गाती
ढेर चुम्मियां लेती
कन्धों से चिपकाकर
खोले सरपट चोली
मीठा दूध पिलाकर
गाती मीठी रोली
[भरूच:११०३.०९]

हाय हाय यह वर्षा कैसी !

काले काले बदल छाये
सागर से पानी भर लाये
चंदा सूरज जेल में डाले
मुंह दिखलाने से शरमाये
हाय हाय यह वर्षा कैसी!
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी
पलभर को भी रुके ण पानी
घर से निकलो जी घबराए
आती याद सभी को नानी
हाय हाय यह वर्षा कैसी!
नद नालों में पूर आ गई
गली गाँव खलिहान छा गई
ऊबे पशु पंछी नर नारी
आंधी पानी बाढ़ आगयी
हाय हाय यह वर्षा कैसी!
[पंजिम:११.०८.८८]

फूल फूल पर तितली

नंदन वन सा सजा बगीचा
हरी घास का बिछा गलीचा
फूलों ने रंग दी रंगोली
मानो खेल रहें हों होली
फूल फूल पर बैठी तितली
फूल पराग चूसतीं तितली
जैसे जैसे मैं पास गया
मन में उसके शक सुबह हुआ
हाल चल कुछ पूंछ ण पाया
फुर्र फुर्र उढ़ हाथ हिलाया
[भोपाल:०९.०७.०८]

चंदा तारे सजी बरात

सूरज दिन भर काम करे
सौ सौ हाथों दान करे
जब थककर चकनाचूर हो
घर जाने को मजबूर हो
चुपके से ले आए रात
चंदा तारे सजी बरात
{भोपाल:२५.०८.०८]

मॉल बजाल

मम्मी पापा के छंग छंग
मॉल बजाल गया
भीतल बाहल देख सजावट
पलियों का बाजाल लगा
मोल भाव की नहीं जलूलत
छब चीजों पर भाव छपा
मन मेरा तितली -सा नाचा
मम्मी पापा के बटुआ ने
जो माँगा छो दिलबाया
तरह तरह के खिलौने
चाकलेट टॉफी लाया
जिसको देखा वही वहां से
हंसता हुआ गया
[भोपाल;:३१.०७.०८]

साइकिल

मोटर रेल जहां न जाती
साइकिल बहाँ भी आती जाती
रोटी दाल भात ना खाती
हवा के बल पर इठलाती
नहीं जरूरत चार पाँव की
सैर कराती गाँव शहर की
राम रहीमा करे सवारी
ढोती उनका बस्ता भारी
[भोपाल;.०९.०८]

छाया

छाया हैं पेड़ों की माया
गर्मी में सुख देती छाया
चलता चलता जो थक जाए
छाया के घर में टिक जाए
पानी पीकर प्यास बुझाए
लोरी गा गा तुरत सुलाए
[भोपाल:१५.०९.०८]

मम्मी पापा

सब सच कहते अच्छे हैं
ह्ह्को लगते अच्छे हैं
मेले में जो दिलबाते
खेलखिलौने अच्छे हैं
दुःख भोगें सुख हमको दें
सचमुच इतने अच्छे हैं
पढ़ने लिखने मैं जब चूकें
राह दिखाते अच्छे हैं
मम्मी धरा ,गगन पापा
सब गुन गाते अच्छे हैं
[भरूच:१४.०६.०८]

Monday, July 20, 2009

मानू भानू

एक
म्याऊँ म्याऊँ बिल्ली बोली
मामी पापा मानू बोली
भों भों कुत्ता भौंका
सुनकर एकदम भानू चौका
दो
में में में में बकरी मिमिआई
मानू के घर नानी आई
काँव काँव जब कौवा बोला
कुहू कुहू कोयल मुंह खोला
तीन
मानू बोली पापा मम्मी
भानू बोला नाना नानी
यह सब चारों को ही भाया
हँस हँस दोनों को गले लगाया
[भरूच:१४.10.०८]

दादी माँ

मेरी दादी
पहने खादी
कर में लकुटी
टिक टिक करती
धीरे चलती
बच्चों की शैतानी पर भी
हंस हंस कर आशीष लुटाती
खुश हो बच्चे आगे बढ़ते
मिलजुलकर शाला में पढ़ते
दादी मन्दिर को चल देती
भजन कीर्तन का सुख लेती
[भोपाल:१५.०७.०८]


khush ho गहे लकुटिया
टिक टिक करती
आगे बढ़ती
बच्चे लगे चिढ़ाने
माँ लागी खिसियाने
आई चाची भोली
खोली अपनी झोली
बच्चों को दी टॉफी
माँ को थोड़ी कोंफी
दादी चल दी मन्दिर को
बच्चे भागे शाला को
[भोपाल:१५.०७.०८.]

Monday, July 6, 2009

मुर्गी


मुर्गी अंडे देने वाली


सबको अच्छी लगती हैं


दरबे से बहर आते ही


आढी तिरछी चलती हैं


जहां कहीं मिल जाए दाना


चुगने को चल देती हैं


बच्चे जैसे ही देखें


ढेलें उनको मारें


[भरूच:१२.०६.०८]


रोटी का रोल


सूरज चंदा दोनों गोल
पुरीं रोटियाँ गोलमटोल
स्वाद में ज्यादा खानेवाले
तोंदूंमल -सीं तोंदों वाले
तोंदें उनकी आगे चलतीं
पग पग पर बीमारी छलतीं
मौत ण करती टालमटोल
दुनिया से हो जल्दी गोल
प्यारे बच्चो मेहनत करना
जीवन में nit आगे बढ़ना
मेहनत की रोटी का रोल
जीवन लंबा दे अनमोल
[भोपाल:१५.११.०८]

Wednesday, June 3, 2009

सपनों का संसार

सपनों का संसार निराला

बिना पंख के उड़ते
शैल शिखर पर चदते
नहीं पकड़ में आते
सरपट आते जाते
कभी अँधेरा कभी उजाला

भूत भयानक बनते
उल्टे पांवों चलते
हाथी घोड़ा भालू
पहने रुण्ड मुण्ड की माला

अनसोची सब दुनिया
ज्यों जादू की पुड़िया
भूत भविष्यत बांचें
सपने 'बच्चन 'की मधुशाला
[अलाहाबाद:ममफोर्डगंज :१३.०४.०९]

Wednesday, May 20, 2009

चुन्नू मुन्नू

घर आँगन बुनता सन्नाटा
सूनेपन का सिर भन्नाता
चुन्नू मुन्नू ज्योहीं जागे
लड़ना रोना चील झपट्टा
भनक पडी जब अम्माको
चैन कहाँ फिर अम्मा को
छोड़ा चौका चूल्हा सब
गुस्सा आया अम्मा को
खबर लगी जब पप्पा को
दौड़े दौड़े घर आए
दोनों लिपटे पप्पा को
फरियादें जब शुरू हुईं
दोनों हो गए छुई मुई
नहीं मानता कोई कुछ
अकल न जानें कहाँ गयी
[भोपाल;१५.१२.०८]

नाना नानी

जैसे ही मैं घ्र्म्प्र पहुंची
मम्मी बोली भर लो पानी
साफ़ सफाई घर की करलो
आने बाले नाना नाना नानी
आए जैसे ही घर दोनों
लाये भारी भरी अटैची
दौड़ी दौड़ी मै बसते से
आनन फानन लाई कैंची
देखी टॉफी खेल खिलौने
खुशियाँ भूलीं ठौर ठिकाना
होम वर्क ना कर पाने का
सबसे अच्छा मिला बहाना
बत्बारे ने खड़ा कर दिया
छीना झपटी और झगड़ना
चुन्नू मुन्नू किए तमाशा
रोना धोना पैर पटकना
नाना नानी ने दोनों को
अपनी अपनी गोद उठाया
आंसू पोछे लाड प्यार से
चुन्नू मुन्नू को समझाया
[भोपल१५.१२.०८]

Tuesday, May 19, 2009

आलिम फाजिल

अम्मा बापू ने समझाया
कैसे कैसे वे पढ़पाए
पट्टी की पूजा होने पर
गुड़ का भेला फूटा
गाँव और बच्चों ने मिलजुल
खूब मज़ा तब लूटा
रोज़ 'बुद्क्का ' पट्टी के संग
पैदल पढने शाला आए
'कित्किन्नो ' के ऊपर हमने
अपनी कलम घुमाई
'ओनम' गिनती पंडितजी ने
बार बार रत्बाई
कान खिचे मुर्गा बन करके
जाने कितने डंडे खाए
पंडितजी के संकेतों पर
पढ़ते लिखते सोते
रहे खपाते जी पढनेमें
मिले सदा ही पढ़ते
भूखे नंगे रह पढ़े लिखे
तब बन पाये आलिम फाजिल
[भोपाल:१३.०२.०९]

Tuesday, May 5, 2009

मैदान

लंबा चौड़ा हो मैदान
खेल कूद का हो सामान
मिलजुल हम सब खेलें खेल
खेल भावना का हो मेल
आगे चलकर हम सब बच्चे
बने खिलाड़ी सबसे अच्छे
फिर हों हम सब बल्लेबाज
हो दुनिया को मह पर नाज
छक्कों की जब हो भरमार
विश्व कपों से जोडें तार
ध्यानचन्द्र बिंद्रा सा काम
कपिल सानिया सा हो नाम
देश बिदेशी हो मैदान
रहे तिरंगे की बस शान
[भोपाल:०५.०५.०९]

Sunday, May 3, 2009

पप्पू निम्मी

एकबार आती है होली
खुशियों से भर लाती झोली
गली गली में होली मनती
कली कली हर मन की खिलती
उड़े गुलाल नाचे पिचकारी
सराबोर है दुनिया सारी
वन उपवन सब क्यारी क्यारी
नाचते बजा बजा कर तारी
दादा दादी पापा मम्मी
सबसे खुश हैं पप्पू निम्मी
[भरूच:नीरजा .११.०३.०९]

दीपक एक दिखें अनेक

शीशे कभी न झूठ बोलते
छिपे भेद का भेद खोलते
जब दो अकदेंडैडं सीना तानें
एक दूसरे के हो सामने
बीच में जलता दीपक एक
बच्चे देखें दिखें अनेक
[भरूच:०७.०३.०९]

Friday, April 10, 2009

मांगें

मम्मी मुझको पढने जाना
जब छुट्टी हो लेने आना
नई ड्रेस हो रंगबिरंगी
देंखे खुश हों साथी संगी
नया नया हो बस्ता प्यारा
ताजा नाश्ता मीठा खारा
छुट्टी हो मिलजुलकर खाएं
खाकर ताजा हो जाएँ
घर आँगन जैसी हो शाला
दादा -दादी सा रखवाला
रंग बिरंगों पन्नों वाली
नीले पीले रंगों वाली
हर किताब का ताना बाना
लगता हो जाना पहचाना
[भोपाल:०६.०४.०९]

Wednesday, April 8, 2009

पढ़ना लिखना भारी बस्ता

होमवर्क करते थक जाना
जैसे जहाँ बहीं सो जाना
आनन फानन तड़के उठना
उठते उठते आँखें मलना
बस्ता टिफिन साथ ले चलना
दिनभर शाला में फ़िर खटना
सर पर भूत पढ़ाई चढ़ना
अनचाहा सर माथे मढ़ना
हम बच्चों की हालत खस्ता
पढना लिखना भारी बस्ता
[भोपाल:०९ .०४ .०९]

Monday, March 30, 2009

तारे तोड़ गगन के लाता!

मेरा मन सुख रस पी पाता
तरेर तोड़ गगन के लाता
सब टीचर गिटपिट करते है
श्याम शेख सहमें रहते हैं
नहीं समझ में कुछ भी आता
मेरा तन मन कँप कँप जाता
मन मसोसकर मैं रह जाता
तुम अजीब ही हो सब बच्चे
पढने लिखने में सब कच्चे
तानें पर तानें सब मारें
कोई नहीं गुने मनुहारें
मन मेरा गहरा धँस जाता
मन में भाव उठें कुछ ऐसें
छुटकारा पाऊँ मैं कैसे ?
शाला हो घर ,अपनी भाषा
प्यार मुहब्बत की परिभाषा
पढ़ने लिखने से जुड़ पाता
[भोपाल :२९.०३ ०९]

कँप

Saturday, March 21, 2009

मेरी प्यारी कलम

मेरी प्यारी कलम
सबसे न्यारी कलम
सीना ताने चले
जीते परी कलम soch
सोच सोच कर रखे
लिकना जारी कलम
लीक छोड़ कर चले
हसती गाती कलम
रचे नया इतिहास
अतुलित भारी कलम
[नागपुर: २६.०२.०९]

Friday, March 20, 2009

गौरेया

घर आँगन में गौरैया

दाना चुगने आती

सब बच्च्चे जब शोर मचाते

फुर फुर फुर उड़ जाती

मगर दूसरे दिन आकर

चीं चीं चीं चीं गाती

बच्चों का जी बहलाकर

दाना ले उड़ जाती

चुनिया मुनिया खुश होते

अपने बच्चे लाती

फुदक फुदक घर आँगन में

परिचय फ़िर करबाती

दायें बाएँ आँख तिरेरे

कुछ कुछ कुछ समझाती

जब देखो तब चीं चीं में सब कुछ ही कह जाती

[भरूच:१२.०३.०९]

Tuesday, March 17, 2009

फूल फूल मत इतना फूल

फूल फूल मत इतना फूल
झर जाए बन जाए धूल
हंसीं उढाये सारे फूल
तितली जाए तुझको भूल
भौरा भूले गुंजन गान
जलकर राख बने सब शान
बनना पाये गले का हार
थून थून थूके पग पग हार
ठिठकें पाँव खींचती ध्यान
बच्चों जैसी हो मुस्कान
[भरूच:नीरजा ;१२.०३।09]

Saturday, March 14, 2009

दीपक एक :दिखें अनेक

शीशे कभी न झूठ बोलते
छिपे भेद का भेद खोलते
जब दो अकधें सीना तानें
एक दूसरे के हों सामने
बीच में जलता दीपक एक
बच्चें देखें दिखें अनेक
[भरूच:नीरजा :०७.०३.०९]

मोबाइल

मेरी दादी जब भी आती
नए खिलौनें ढेरों लाती
अबकी दिया नया मोबाइल
करना है नाना को डायल
चलना है अबकी कलकत्ता
कोई साथ न हो अलबत्ता
दुनिया भर की सैर करेंगे
सब मित्रों से बात करेंगे
[रेलपथ बरोदा से :०६.०३.०९]

Thursday, February 19, 2009

दादी माँ का चश्मा

एक ओर का हैंडल टूटा
कांच दूसरा आधा फूटा
घूरघूर सब ओर देखती
रंगों के सब भेद परखती
पूंछो तो झटपट बतलाती
पलपल माला जपती जाती
लाल गुलाब लाल बत्ती का
हरा बबूल नीम पत्ती का
पीला रंग है सरसों का
नीला बच्चों के बस्तों का
[भोपाल:०९.०७ ०९ ]

Friday, February 13, 2009

मेरा घोड़ा

लकड़ी का है मेरा घोड़ा

भाता उसे न खाना कोड़ा

जैसे ही मैं ऐड लगाता

अदभुत खूब कमाल दिखाता

चाहो जहाँ वहां ले जाता

हम बच्चों को दिल से भाता

खाता है ना दाना पानी

थामे देख घर नाना नानी

[भोपाल:१२.०८.०९]

Thursday, February 12, 2009

आलिम फाजिल

अम्मा बापू ने बतलाया

कैसे कैसे वे पदढ पाये

'पट्टी' की पूजा होने पर

गुड का भेला फूटा

गाँव और बच्चों ने मिलकर

खूब मजा तब लूटा

रोज 'बुधक्का' पट्टी के संग

पैदल पढने शाला आए

'कित्कंनों 'के ऊपर हमने

अपनी कलम घुमाई

पंडित जी ने 'ओणम' गिनती
बार बार रत्बाई
कान खिचे मुर्गा बन कर के
जाने कितने डंडे खाए
पंडित जी के संकेतों पर
पढ़ते लिखते सोते
रहे चुराते जी पढने से
मिले सदा वे रोते
पढ़े लिखे भूखे नंगे हम
तब आलिम्फाजिल बन पाये
[भोपाल:१२.०२.०९]
१२.०२.०९]

Wednesday, February 11, 2009

शिकवा शिकायत



मम्मी पापाजी बात सुनो
जूना मिला बस्ता मेरा
देख देख सब हंसते
बजना प्रेस के कपड़े मेरे
देख देख सब हंसते
मेरे मन का दर्द गुनो
भैया ने जो पदीं किताबें
फटीं पुरानी दिखतीं
टिफिन देख कर सबकी आखें
लगता कुछ कुछ कहतीं
उस सबका भी सार चुनो
मम्मी पापा सब बच्चों के
नित शाला पहुंचाते
पैदल आता जाता देखें
साथी मुंह बिचकाते
सबको भायें बो तार बुनो
[भोपाल:१३.१२.०८]

Tuesday, February 10, 2009

लूटपाट फ़िर मज़ा उड़ाया

मेरी पतंग के क्या कहने
रंग बिरंगे कपड़े पहने
महगें गहने लम्बी चोटी
हवा खिलाती उसको रोटी
फुर फुर हवा संग उड़ जाती
नीलगगन से हाथ मिलाती
लम्बी डोरी माझा तंगदा
लडें पेंच हो जाए झगड़ा
वो काटा बच्चों को भाया
लूटपाट फ़िर मज़ा उड़ाया
[भोपाल :0 ७ .02.०९ ]

Monday, February 9, 2009

आंखों का तारा

मेरा भैया है राजदुलारा
सबकी आंखों का तारा
मुझको रोज़ पढ़ाता
मेरा जी बहलाता
भूख लगे जब मुझको
बिस्कुट दूध पिलाता
सचमुच सब भैय्यों से न्यारा
सबकी आंखों का तारा
जब भी मेला जाता
साथ मुझे ले जाता
खेल खिलौना टॉफी
चाकलेट दिलबाता
घर आँगन का उजियारा
सबकी आखों का तारा
[भरूच: २०.०६.०८]


बुआ की भूल

माल पुआ अम्मा ने पकाए
जी भर मोटी बुआ ने खाए

अम्मा ने फिर परसी खीर
बुआ ने गप गप खाई खीर

ठंडा ठंडा पानी उडेला
मची पेट में रेलमपेला

तोंद गयी जब गेंद -सी फूल
पता चली तब बुआ को भूल
[भोपाल :१०.०८.०८]

Saturday, February 7, 2009

कोयल बच्चों में होड़

कोयल ने जब गाना गाया
बच्चों ने मिल उसे चिढ़ाया

कोयल बच्चो में होड़ लगी
सारी सीमायें तोड़ चली

कोयल ने जब जैसा गाया
बच्चों ने बैसा दुहराया

जिसने सुना उसी को भाया
मजा खूब बच्चों को आया
[ भोपाल:१६.०९ .०८ ]

Sunday, January 25, 2009

तितली

नंदन वन -सा सजा बगीचा
हरी घास का बिछा गलीचा

फूलों ने रंग दी रंगोली
मानो खेल रहे हों होली

फूल फूल पर बैठी तितली
फूल पराग चूसतीं फिरती

जैसी जैसे मैं पास गया
मन में उसके शक सुवह हुआ

हाल चाल कुछ पूँछ ना पाया
फुर्र फुर्र उढ़ हाथ हिलाया
[भोपाल:०९.07.०८]

Wednesday, January 21, 2009

सुन सुन बिटिया

सुन सुन बिटिया ,तोड़ न खटिया
छिपा अँधेरा
हुआ सवेरा
तोता कौवा
जागी दुनिया
सुन सुन बिटिया ,तोड़ न खटिया
दादा दादी
पापा मम्मी
बबलू जागा
छोड़ी खटिया
सुन सुन बिटिया ,तोड़ न खटिया
चीचीं चहकी
चिड़िया बहकी
उडती तितली
अपनी बगिया
सुन सुन बिटिया ,तोड़ न खटिया
[बरोदा से भरूच रेलपथ :०३ १० ०८ ]